Thursday, October 4, 2007

दीदी की पाती ....

दीदी की पाती ....

नमस्ते है सबको और कैसे हैं आप सब ...? लो मैं फ़िर आ गई हूँ अपनी पाती में बातों का पिटारा ले के
कैसी लगी थी मेरी पिछली पाती ?..खूब करी न साईकिल की सवारी :) अब इस बार की कहानी बहुत ही रोचक है
आप लोगो ने दूरबीन का जादू देखा है ? यह दूर की चीजों को पास ले आती है और पास की चीजों को दूर दिखाती है
अब यह जादू की चीज अखिर बनी कैसे ? सुनना चाहते हो इस की कहानी ?
आओ आपको फ़िर से सुनाये एक कहानी......
यह कहानी हॉलैंड देश के मिडिल बर्ग शहर की है ,वहाँ चश्मो का एक व्यापारी रहता था
वो बहुत अच्छे चश्मे बनाता था नाम था उस का हेंस लिपरशी
बहुत मेहनत से वो अपना काम करता उस के पास कई तरह से बहुत सुंदर सुंदर काँच थे!
उसका एक बेटा था ,वह बहुत शैतान था !रंग बिरंगे काँच के टुकडों से
दिन भर खेलता और उन पर सूरज की रोशनी डाल कर सबको परेशान किया करता
पर बुद्धि का बहुत तेज़ था वो हर चीज़ को जानने की जिज्ञासा सदा उसके दिल में रहती!
एक दिन इतवार था स्कूल में छुट्टी ...लिपरशी उसको अपने साथ दुकान पर ले आया
और उसके सामने काँच के टुकडों की एक बड़ी सी टोकरी रख दी और कहा कि इन सब काँचो को
अलग अलग रंग में एक साथ करके रख दे !
टोकरी में रंग बिरंगे कई काँच के टुकडे थे हर तरह से छोटे बड़े सब ! काँच के टुकडे बहुत सुंदर लग रहे थे .उनको देख के उसके दिल में एक बात आई की यह किसने बनाया होगा ?
उसने पिता जी से पूछा कि पिता जी यह काँच किसने बनाया? क्या यह ज़मीन में पैदा होता
है ?लिपरशी ने मुस्करा के कहा कि यह जमीन में पैदा नही होता,काँच का जन्म तुम जैसे एक शैतान लड़के के खेल से हुआ:)
अच्छा !! बेटे ने हैरानी से पूछा
तब लिपरेशी ने कहा की मिस्त्र देश का रेगिस्तान बहुत बड़ा है वहाँ ऊँटों के काफ़िले
कई कई दिनों तक चलते हैं और वही रेगिस्तान में पड़ाव डाल लेते हैं वही उनका दिन होता है वही रात
एक तरह से वही उनका घर होता है जहाँ रुकते हैं वही खाना बनाते हैं आराम करते हैं
और धीरे धीरे आगे बढ़ते हैं
एक काफ़िले में बहुत से लोग थे बच्चे भी थे उस में
सब तरफ़ रेगिस्तान कही पानी नही, रात हुई वही रेत पर चूल्हा बनाया और वही उस पर खाना
बनाया देर रात तक खाना बनता रहा और बाद में चूल्हा बुझ गया सब लोग वही ठंडी रेत पर
सो गये !सवेरा हुआ सब लोग समान बाँध के चलने की तैयारी करने लगे ,रात को जहाँ
खाना बनाया था वहाँ कुछ बच्चे खेलने लगे चूल्हे की राख वहाँ से हटा के इधर उधर फेंकने लगे
अचानक एक बच्चे ने देखा की राख के नीचे कोई सख्त सी चीज है और उसके नीचे की रेत भी साफ दिखाई दे रही है
पहले बच्चो ने उस को हैरानी से देखा और फिर बड़े लोगो को बुलाया सभी देख के हैरान हो गये .फिर सबने मिल के
उसके उपर जमी राख साफ की वो टेढे मेढे आकार की एक ऐसी जमी हुई चीज थी जिसके आर पार सब देखा जा सकता था!सबने एक दूसरे से पूछा की क्या चूल्हा जलाने से पहले कोई चीज रखी थी किसी ने?
सबने कहा नही तो क्या रेत पिघल गयी ? हाँ यही हुआ था !रेत ही पिघल के काँच बन गयी थी उसके बाद तभी से
लोग रेत से काँच बनाने लगे यह सब एक शैतान लड़के की वजह से हुआ ..अगर वो राख ना हटाता तो कोई काँच के
बारे में ना जान पाता!

लिपरशी की कहानी खत्म हुई और उसने अपने बेटे से कहा जाओ अब बाक़ी के टुकड़े छांट कर रखो और मुझे परेशान मत करना !बेटे ने टोकरी उठाई और बैठ के काँच छांटने लगा फिर उनको उठा के उसने उनसे आर पार देखना शुरू किया
कभी लाल कभी पीला और कभी सबको एक साथ मिला के देखना शुरू किया तभी वो डर गया उसने देखा की सामने जो गिरजाघर की मीनार है वो एक दम से पास आ गयी है उसको लगा कोई भ्रम है ...फिर से देखा ..तो फिर से वही दिखा ..अब उसने सोचा कि
अपने पिता को यह बात बताये या नही ....कही वो ग़ुस्सा ना हो ...कही यह कोई जादू वाला काँच तो नही ? फिर से
एक बार देखूं फिर से उसको वही दिखा ..अब वो चिल्लाया पापा ! पापा !इधर आओ यह काँच जादू का है लिपरशी
भाग के आया और उसने उसके हाथ से दोनो काँच के टुकड़े ले लिए जब उसने देखा तो उसको भी मीनार पास लगी उसने कई बार ऐसा कर के देखा और वो जल्दी ही काँच के इस विज्ञान को समझ गया वो ख़ुशी से फूला ना समाया और बेटे को उठा के नाचने लगा उसका बेटा अभी तक परेशान था कि हुआ क्या है तब उसने बताया की बेटा तुमने अनजाने में एक अविष्कार कर दिया है दूर की वस्तु को पास से देखने की तरकीब खोज ली है अब हम एक यंत्र बनाएँगे इस से हमारा नाम भी अब दुनिया में होगा !""

फिर लिपरशी ने वैसे ही काँच को लगा के एक दूरबीन बनाई जो संसार की पहली दूरबीन थी !सब लोगो ने उसो बधाई दी
पर असली हक़दार तो बधाई का उसका बेटा था जिसने अनजाने में इतना बड़ा आविष्कार कर दिया था इसी दूरबीन के आधार पर
गेलिलियो बड़ी दूरबीन बनाई ...


सो बच्चो देखा बच्चे अपनी शरारतों से भी कई बार नयी चीज़ो का अविष्कार कर देते हैं
आप भी ख़ूब शरारत करे पर ऐसी जो काम आए किसी का नुक़सान ना हो अब भला बच्चे शैतानी
नही करेंगे तो कौन करेगा .. :)


और अब बारी है आज की एक रोचक बात .की ..मेढकों की एक प्रजाति के मेढक काँच मेढक है


इनकी त्वचा इतनी पारदर्शी काँच की तरह होती है की इनकी टांगो के अंदर हड्डियाँ शिरायें और इनकी धमनी यों में दौड़ता ख़ून साफ दिखाई देता है बाक़ी अंग भी साफ दिखते हैं कांच मेढक मूल रूप से पेड़ पर रहते हैं और भारत ,अफ्रीका मेडागास्कर को छोड़ के यह संपूर्ण संसार में पाए जाते हैं मध्य और दक्षिणी अमरीका में तो यह बहुत मिलते हैं !!




बस आज इतना ही ....जल्दी ही फ़िर से आऊंगी नयी मज़ेदार बाते ले के

पर आप ज़रूर लिखे मुझे की आपको यह जानकारी कैसी लग रही है

अपना ध्यान रखे

बहुत सारे प्यार और दुलार के साथ

आपकी दीदी रंजना !


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11 पाठकों का कहना है :

अभिषेक सागर का कहना है कि -

रंजना जी,
दीदी की पाती की श्रिखला मे एक और अच्छी जानकारी के लिये बधाई।
बहुत अच्छी जानकारी... बच्चो के लिये बहुत ज्ञानप्रद है।

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

नमस्कार रंजना जी,

बहुत ही रोचक व ज्ञानवर्धक जानकारी आपके पिटारे से मिली
बच्चे ही नहीं वरन बड़े भी लाभांवित होंगे.
ऐसी दुर्लभ जानकारियों के लिये हर्दिक बधाई..

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

रंजना जी,


बाल-उद्यान का यह सबसे ज्ञानवर्धक और आकर्षक स्तंभ है। इस स्तंभ के माध्यम से जो भी जानकारियाँ आपने प्रदान की हैं वे संग्रहणीय तो हैं ही रोचक भी हैं। आप आने वाली पीढी के लिये वह सामग्री तैयार कर रहीं हैं किसके लिये आपका आभारी हुआ जा सकेगा।


*** राजीव रंजन प्रसाद

SahityaShilpi का कहना है कि -

रंजना जी!
आपका स्तम्भ सचमुच बाल-उद्यान का बहुत अच्छा और आकर्षक पहलू है. पुनश्च: बधाई!

Dr. Zakir Ali Rajnish का कहना है कि -

आपने एक रोचक घटना को रूचिकर स्वरूप में प्रस्तुत किया है। आशा है आगे भी आप इसी प्रकार रोचक जानकारियों को सचित्र रूप में प्रस्तुत करती रहेंगी। बधाई।

Mohinder56 का कहना है कि -

रंजना जी,

मैं समझ सकता हूं आपने यह लेख लिखने के लिये कितनी मेहनत की होगी... परन्तु जो जानकारी आपने दी है वह अमुल्य है.....
अगली कडी का इन्तजार रहेगा

शोभा का कहना है कि -

रंजना जी
दीदी की पाती में आप बहुत ही उपयोगी जानकारी दे रही हैं । बच्चों को ही नहीं बड़ो को भी भा रही हैं ।
आपकी लगन को प्रणाम ।

Unknown का कहना है कि -

रंजना जी,

नमस्कार
आपकी चिठ्ठी क्षमा करें पाती हर बार की तरह इस बार भी बहुत ही रोचक जानकारी लेकर आयी। वह भी दूरबीन के बारे में। वाह ! फिर क्या था मैंने भी निकाली अपनी दूरबीन और कैमरा और चल पड़ा अपने घर की छत पर और बच्चो मालुम मैंने क्या किया शुक्र तथा चन्द्र (वीनस और मून) के मिलन की सदियों मे होने वाले मिलन की फोटो ले डाली। अब आप लोगों को कैसे दिखाऊं ... अभी तो एक रास्ता है मेरे साथ कहानी कलश पर आओ और सुरूचि सुस्रष्टा लघु कथा के नीचे वाला चित्र देखो पहचानो। यह वही शुक्र तथा चन्द्र (वीनस और मून) के मिलन की सदियों मे होने वाले मिलन की फोटो है ।
बच्चो तब तक रंजना दीदी को धन्यवाद देते हुये पूछते हैं मेरे पास ढेरों फोटो हैं उन्हें कहां भेजें
रजना जी को बधाई सहित
सारे भैया बहनों को प्यार
श्रीकान्त मिश्र 'कान्त'

सुनीता शानू का कहना है कि -

वाह बहुत ही रोचक है बच्चो को ही नही बड़ो के काम की भी है यह पोस्ट...आपका लिखने का तरीका तो हमको बच्चा ही बना देगा...

सुनीता(शानू)

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

रंजना जी,

अपनी इस मेहनत को कुच स्कूल वालों को भी दिखायें, बच्चों को बहुत लाभ होगा। बाल-उद्यान का इससे बढ़िया स्तम्भ नहीं है कोई। धीरे-धीरे यह और समृद्ध हो जायेगा।

गीता पंडित का कहना है कि -

रंजना जी,


वाह .....वाह....

बहुत रोचक...........
बच्चो के ही नही बड़ो के काम की भी है
अच्छी जानकारी के लिये ..........

बधाई।

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